सोमवार, 26 जुलाई 2010
कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या के लिए पिछले चार दशकों से चली आ रही नीतियाँ ही जिम्मेदार हैँ । छोटी व मध्यम जोत के जो किसान बीज बचाने व खाद तैयार करने में सक्षम हैँ उन्हेँ हाइब्रिड बीज के साथ यूरिया जैसा जहर सब्सिडी मेँ दिया जाता है । इन बीजों की फसलें नए बीज तैयार करने में अक्षम हैं ऐसे में किसान फिर एजेंसियों की बाट जोहता है । ये उत्पादक को उपभोक्ता बनाने का एक नायाब तरीका है । परम्परागत प्रजातियाँ जो कि वास्तविक Landrace हैं मौसम के अनुकूल, स्वादिष्ट व औषधीय गुणों से युक्त होती हैँ। ये लगातार हाशिए पर जा रही हैँ जबकि फिट भर के बेस्वाद मक्कोँ जैसी हजारोँ कृष्य प्रजातियाँ विकास के नाम पर आखिरी गाँवों तक पहुँच चुकी हैं । ये एक बड़ा खेल है जिसमें किसान केवल मोहरा भर है।
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