मंगलवार, 10 अगस्त 2010

अब मानसूनोँ का चौमास आया
भूरे बादलोँ को चीरकर
गाड़ गधेरोँ ने संगीत सीखा
ऐ ददा, पैर-पखाणोँ की फिकर
फुहारोँ ने बड़ाया सफर रोपाई मडुवा झंगोरा फांफर
मेढकोँ ने बेसुरा गाया
ऐ ददा, टर्र टर टर्र टर
गाड़ गधेरे ताल चोपटाल जोँक उमस छिनघौ कच्यार
सबका चरम समेटे आया
ऐ ददा, हरेले का पोषक त्यार
काली रातेँ सफेद हौल
घाम द्‌यो घाम द्‌यो चौल मचौल
कुकुरबिटेसी ककड़ा रौल
तेर हारि घोगा आगा घौल
खाना खाया नखाना सुखाया
लटपट शाग पपड़ा नौल
गमरा दीदी मैशर भीना
आठूँ के धारे और कशार
दिन भर बिरुड़ चाँचरी ब्याल
भीगते बँजारे खतरे मेँ श्याल
ऐ ददा, संभल के रस्ते मेँ श्यांल
गीली दीवार टपकता स्कूल
शिक्षा मेँ सीलन भीगा सा ख्याल
एम डी एम मेँ कद्‌दू-कर्‌याल
और भीगे से ब्लैकबोर्ड मेँ अंग्रेजी का सवाल
ऐ ददा, वन मीन्स एक स्नेल मीन्स गण्याल। -लोकेश डसीला
(वर्षा, 2010)

सोमवार, 26 जुलाई 2010

कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या के लिए पिछले चार दशकों से चली आ रही नीतियाँ ही जिम्मेदार हैँ । छोटी व मध्यम जोत के जो किसान बीज बचाने व खाद तैयार करने में सक्षम हैँ उन्हेँ हाइब्रिड बीज के साथ यूरिया जैसा जहर सब्सिडी मेँ दिया जाता है । इन बीजों की फसलें नए बीज तैयार करने में अक्षम हैं ऐसे में किसान फिर एजेंसियों की बाट जोहता है । ये उत्पादक को उपभोक्ता बनाने का एक नायाब तरीका है । परम्परागत प्रजातियाँ जो कि वास्तविक Landrace हैं मौसम के अनुकूल, स्वादिष्ट व औषधीय गुणों से युक्त होती हैँ। ये लगातार हाशिए पर जा रही हैँ जबकि फिट भर के बेस्वाद मक्कोँ जैसी हजारोँ कृष्य प्रजातियाँ विकास के नाम पर आखिरी गाँवों तक पहुँच चुकी हैं । ये एक बड़ा खेल है जिसमें किसान केवल मोहरा भर है।

शुक्रवार, 5 जून 2009

ट्रॉय के बारे में

ऐखिलीस बेशक महान था, वो एक बेहतरीन कातिल था, वो पैदाइशी मौत का फ़रिश्ता था, यूनान का कोई भी राजा उसका राजा नही था, ऐसा उसका मानना था । उसने ट्रॉय की प्रिंसेस को कहा था की ," देवता हमसे जलते हैं उनके लिए चीजों की कोई अहमियत नही है जबकि हर चीज हमारे लिए खूबसूरत है क्यो की हमें मरना है , इस पल तुम जितनी खूबसूरत लग रही हो, ये पल लौट के फ़िर कभी नही आएगा, आज के बाद हम यहाँ फ़िर कभी नही होंगे " उसकी तलवार ने कई सिरों को उनके धड से अलग किया , उसने देवदासियों को भी नही बख्शा , पुजारियों को मौत के घाट उतारा यहाँ तक की अपोलो की मूर्ति पर भी कई प्रहार किए।
मगर जब बात हैक्टर की आती है ऐखिलीस के उलट उसका चरित्र मानवतावादी रूप में करीने से प्रतिबिंबित होता है। वो एक जिम्मेदार युवराज होने के साथ साथ एक जिम्मेदार बेटा, एक जिम्मेदार पति, एक जिम्मेदार पिता और एक जिम्मेदार भाई भी था। उसका होना ही ट्रॉय की सलामती थी। अन्धविश्वशियों के देश में वो मौलिक तरीके से सोचता था। ऐखिलिस के हाथों उसकी मौत ट्रॉय की बर्बादी की शुरुआत भी थी और अंत भी।
हैक्टर ने हमेशा ही मेरी नजरों में एक नायक की छाप छोड़ी है।

गुरुवार, 4 जून 2009

आज पर्यावरण दिवस पर नए पेड़ लगाने के बजाय, क्यों ना पहले से ही निरीह और लगातार हाशिये पर जा रहे वनों एवं वन्य जीवों को बचाने का संकल्प लिया जाए।

बुधवार, 3 जून 2009

बुरांश

मैं खंडित तरुखंड
रुदित रुगान्वित हूँ
कहीं पीयर कहीं रक्तिम
जलप्रदा ही नही जलावन भी हूँ
हाँ। बुरांश हूँ मैं ,
उत्तरपूर्वी नही , उत्तरजीवी हूँ मैं।

घुघूती बासूती

आज आपके लिए ही विशेष ब्लॉग लिखने की सूझी है । अब रोज रोज तो लिख नही सकते हैं ना । फ़िर भी घुघूती बासूती पर चर्चा करने के बाद पुनः एक बार फ़िर आपका ध्यान इस तरफ़ खींचने की कोशिश कर रहा हूँ।
घुघूती बासूती एक विचार है, या कहें विचार से बड़कर एक सोच, एक विमर्श, एक प्रयास है। अपने उत्तराखंड के इतिहास, संस्कृति, शिक्षा व पर्यावरण जैसे अहम् आधारों व उनसे जुडी चुनौतियों को साथ लेकर उत्तरआधुनिकतावाद से जुड़ने का.सोच का ऐसा आयाम जहाँ विषय हों, सजीव बिम्ब हों जिनका निष्पक्ष व बेबाक अंदाज़ में पूर्वाग्रहरहित विश्लेषण हो, संवाद हो...कुछ तेरी कुछ मेरी लेकिन जो बात हो सबकी............इसी श्रंखला के अगले प्रयास में हम जल्द ही आपके बीच एक पत्रिका के माध्यम से आयेंगे.आशा है अपनी जड़ों को समझने के इस प्रयास में आप 'घुघूती बासूती' की सोच का पक्ष लेंगे. कृपया प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएं। धन्यवाद।