मंगलवार, 10 अगस्त 2010

अब मानसूनोँ का चौमास आया
भूरे बादलोँ को चीरकर
गाड़ गधेरोँ ने संगीत सीखा
ऐ ददा, पैर-पखाणोँ की फिकर
फुहारोँ ने बड़ाया सफर रोपाई मडुवा झंगोरा फांफर
मेढकोँ ने बेसुरा गाया
ऐ ददा, टर्र टर टर्र टर
गाड़ गधेरे ताल चोपटाल जोँक उमस छिनघौ कच्यार
सबका चरम समेटे आया
ऐ ददा, हरेले का पोषक त्यार
काली रातेँ सफेद हौल
घाम द्‌यो घाम द्‌यो चौल मचौल
कुकुरबिटेसी ककड़ा रौल
तेर हारि घोगा आगा घौल
खाना खाया नखाना सुखाया
लटपट शाग पपड़ा नौल
गमरा दीदी मैशर भीना
आठूँ के धारे और कशार
दिन भर बिरुड़ चाँचरी ब्याल
भीगते बँजारे खतरे मेँ श्याल
ऐ ददा, संभल के रस्ते मेँ श्यांल
गीली दीवार टपकता स्कूल
शिक्षा मेँ सीलन भीगा सा ख्याल
एम डी एम मेँ कद्‌दू-कर्‌याल
और भीगे से ब्लैकबोर्ड मेँ अंग्रेजी का सवाल
ऐ ददा, वन मीन्स एक स्नेल मीन्स गण्याल। -लोकेश डसीला
(वर्षा, 2010)

1 टिप्पणी:

  1. और क्या कहूँ अभिभूत हूँ .... मिटटी की खुशबू मयस्सर करा दी गले लग जाओ मेरे यार ... तुमसे आँख की नमी छुपानी है..

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